मौत_की_किताब_–_ख़ालिद_जावेद.pdf
15.1 MB
मौत की किताब – ख़ालिद जावेद
#KhalidJawed #Novel
“...दुनिया जगह ही ऐसी है, यह बिल्कुल ख़ाली है। तमाम संभावनाओं से ख़ाली, इसमें कुछ भी नहीं है। मुझे इस बात का शिद्दत से एहसास है कि मैं अपनी मर्ज़ी से तो यहां नहीं आया था। मैं तो दुनिया में इस तरह उड़ेल दिया गया था, जैसे मिट्टी के एक बदरंग लोटे से पानी। और जो अब यहां लगातार गंदला होता जा रहा है। गंदला और मैला होते जाने के अलावा मेरे बस में कुछ भी नहीं था।”
#KhalidJawed #Novel
“...दुनिया जगह ही ऐसी है, यह बिल्कुल ख़ाली है। तमाम संभावनाओं से ख़ाली, इसमें कुछ भी नहीं है। मुझे इस बात का शिद्दत से एहसास है कि मैं अपनी मर्ज़ी से तो यहां नहीं आया था। मैं तो दुनिया में इस तरह उड़ेल दिया गया था, जैसे मिट्टी के एक बदरंग लोटे से पानी। और जो अब यहां लगातार गंदला होता जा रहा है। गंदला और मैला होते जाने के अलावा मेरे बस में कुछ भी नहीं था।”
मेरी_कहानियां_निर्मल_वर्मा.pdf
22.1 MB
मेरी कहानियां – निर्मल वर्मा
#NirmalVerma
#NirmalVerma
तारीख़_में_औरत_Tareekh_Mein_Aurat_Hindi_Edition.pdf
87.9 MB
तारीख़ में औरत – अशोक पाण्डे
( बेमिसाल स्त्रियों की दास्तानें )
#WomenLiterature
औरत ने कुदरत को सँवारकर रखने में अपनी हिस्सेदारी निभाई क्योंकि उसका जन्म ही सृजन के लिये हुआ था। उसने युद्ध नहीं रचे। उसे इसकी फ़ुरसत ही नहीं थी। तमाम तरह की विभीषिकाओं के बीच और उनके गुज़र जाने के बाद भी उसने जीवन के बीज बोए। इसके लिये उसे कभी किसी अतिरिक्त ऊर्जा की आवश्यकता नहीं रही। यह और बात है कि न जाने कब से पिलाई जाती रही त्याग, ममता और श्रद्धा की घुट्टियों ने उसके अस्तित्व को इस कदर बांधा कि वह आज तक इन्हीं छवियों में मुक्ति तलाशती आ रही है।
बहुत मुमकिन है आपने इस किताब में आने वाली औरतों में से अनेक के नाम न सुने हों। जीवन की भयानक त्रासदियों से गुज़रकर वे टूटीं, गिरीं और फिर उठकर खड़ी हुईं। ज़रूरी नहीं कि उन्हें किसी के सामने ख़ुद को किसी तरह साबित ही करना था लेकिन उन्होंने ज़िंदगी चुनी। उनमें से एक-एक हमारे ही भीतर लुक-छुपकर बैठी है, हमारे-आपके आसपास की औरत है। इस औरत ने बड़े एहतियात से तमाम शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक संघर्षों के बीच अपनी राह बनाई है। अशोक पाण्डे इसी औरत का हाथ थाम लेते हैं।
—स्मिता कर्नाटक
( बेमिसाल स्त्रियों की दास्तानें )
#WomenLiterature
औरत ने कुदरत को सँवारकर रखने में अपनी हिस्सेदारी निभाई क्योंकि उसका जन्म ही सृजन के लिये हुआ था। उसने युद्ध नहीं रचे। उसे इसकी फ़ुरसत ही नहीं थी। तमाम तरह की विभीषिकाओं के बीच और उनके गुज़र जाने के बाद भी उसने जीवन के बीज बोए। इसके लिये उसे कभी किसी अतिरिक्त ऊर्जा की आवश्यकता नहीं रही। यह और बात है कि न जाने कब से पिलाई जाती रही त्याग, ममता और श्रद्धा की घुट्टियों ने उसके अस्तित्व को इस कदर बांधा कि वह आज तक इन्हीं छवियों में मुक्ति तलाशती आ रही है।
बहुत मुमकिन है आपने इस किताब में आने वाली औरतों में से अनेक के नाम न सुने हों। जीवन की भयानक त्रासदियों से गुज़रकर वे टूटीं, गिरीं और फिर उठकर खड़ी हुईं। ज़रूरी नहीं कि उन्हें किसी के सामने ख़ुद को किसी तरह साबित ही करना था लेकिन उन्होंने ज़िंदगी चुनी। उनमें से एक-एक हमारे ही भीतर लुक-छुपकर बैठी है, हमारे-आपके आसपास की औरत है। इस औरत ने बड़े एहतियात से तमाम शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक संघर्षों के बीच अपनी राह बनाई है। अशोक पाण्डे इसी औरत का हाथ थाम लेते हैं।
—स्मिता कर्नाटक
नया_ज्ञानोदय_काफ्क़ा_विशेषांक.pdf
80.6 MB
काफ़्का विशेषांक (नया ज्ञानोदय)
#Kafka
#Kafka
चुने_हुए_उपन्यास_अमृता_प्रीतम.pdf
95.9 MB
चुने हुए उपन्यास – अमृता प्रीतम
इस पुस्तक में निम्न उपन्यास संकलित हैं :
पिंजर, नागमणि, यात्री, आक के पत्ते, कोई नहीं जानता, यह सच है, तेरहवाँ सूरज, उनचास दिन
#AmritaPritam #Novel
इस पुस्तक में निम्न उपन्यास संकलित हैं :
पिंजर, नागमणि, यात्री, आक के पत्ते, कोई नहीं जानता, यह सच है, तेरहवाँ सूरज, उनचास दिन
#AmritaPritam #Novel
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“एक अदीब ‘अदीब’ होता है, औरत या मर्द नहीं।”
“ज़िन्दगी का यथार्थ क्या है... ‘मैं’ से लेकर ‘मैं’ तक की यात्रा; यानी अपने ही ‘छोटे मैं’ से लेकर अपने ही ‘बड़े मैं’ तक की यात्रा, ग़ुलामी से स्वतंत्रता तक की यात्रा, नफ़रत से मोहब्बत तक की यात्रा, जड़ से चेतन तक की यात्रा, अक्षर से अर्थ तक की यात्रा, महदूद से ला-महदूद तक की यात्रा यानी सीमित से असीम होने तक की यात्रा।”
~ अमृता प्रीतम #AmritaPritam
“ज़िन्दगी का यथार्थ क्या है... ‘मैं’ से लेकर ‘मैं’ तक की यात्रा; यानी अपने ही ‘छोटे मैं’ से लेकर अपने ही ‘बड़े मैं’ तक की यात्रा, ग़ुलामी से स्वतंत्रता तक की यात्रा, नफ़रत से मोहब्बत तक की यात्रा, जड़ से चेतन तक की यात्रा, अक्षर से अर्थ तक की यात्रा, महदूद से ला-महदूद तक की यात्रा यानी सीमित से असीम होने तक की यात्रा।”
~ अमृता प्रीतम #AmritaPritam
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“मेरी नज़र में धर्म (वास्तविक धर्म) का किसी भी मज़हब (लोकधर्म/संगठित धर्म) से कोई ताल्लुक़ नहीं होता। धर्म इंसान की रगों में चलते हुए ख़ून का नाम है, और मज़हब ऊपर से पहने हुए वस्त्रों का नाम है। धर्म का स्थान मन में होता है, मस्तक में होता है और घर के आंगन में होता है; लेकिन मज़हब का स्थान बाज़ार में होता है, बाज़ार की दुकानों में होता है।”
~ अमृता प्रीतम #AmritaPritam
~ अमृता प्रीतम #AmritaPritam
यूरोप_के_स्केच_रामकुमार.pdf
10.5 MB
यूरोप के स्केच (यात्रा-संस्मरण) – रामकुमार
#Memoir
#Memoir