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Buddha Jayanti 2021: भगवान बुद्ध की शिक्षाएं जो जीवन को बदल सकती हैं और सकारात्मकता की ओर ले जाती हैं 💐

Buddha Jayanti 2021: बुद्ध पूर्णिमा, जिसे बुद्ध जयंती के रूप में भी जाना जाता है. इस दिन बौद्ध धर्म के संस्थापक 'भगवान गौतम बुद्ध' का जन्म हुआ था. इस साल 7 मई को बुद्ध जयंती या बुद्ध पूर्णिमा मनाई जा रही है. बुद्ध पूर्णिमा का त्यौहार भारत और अन्य एशियाई देशों के हिंदुओं और बौद्धों दोनों द्वारा मनाया जाता है.

गौतम बुद्ध का पारिवारिक जीवन

गौतम बुद्ध का जन्म कपिलवस्तु के निकट लुम्बिनी में हुआ था. उनके पिता शुद्धोधन शाक्यगण के प्रधान थे तथा माता माया देवी अथवा महामाया कोलिय गणराज्य (कोलिय वंश) की कन्या थीं. गौतम बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था. इनके जन्म के कुछ दिनों के बाद इनकी माता का देहांत हो गया था और इनका पालन उनकी मौसी प्रजापति गौतमी ने किया था. इनका विवाह 16 वर्ष की अल्पायु में शाक्य कुल की कन्या यशोधरा के साथ हुआ था. इनके पुत्र का नाम राहुल था.

बुद्ध के जीवन में चार द्रश्यों का अत्यधिक प्रभाव पड़ा:

- वृद्ध व्यक्ति

- बीमार व्यक्ति

- मृतक

- और प्रसन्नचित्त संन्यासी

इन सबके बारे में उन्होंने अपने सारथी से पूछा तो उसने कहा कि हर एक के जीवन में बुढ़ापा आने पर वह रोगी हो जाता है और रोगी होने के बाद वह मृत्यु को प्राप्त करता है. जब उन्होंने संन्यासी के बारे में पूछा तो सारथी ने कहा कि संन्यासी ही है जो मृत्यु के पार जीवन की खोज में निकलता है. जब उनकी पत्नी और बच्चा सो रहे थे तब उन्होंने ग्रह त्याग किया. यहीं आपको बता दें कि बौद्ध ग्रंथों में गृह त्याग को ‘महाभिनिष्क्रमण’ की संज्ञा दी गई है.


कैसे सिद्धार्थ से गौतम बुद्ध बने?

ग्रेह्त्याग के बाद सिद्धार्थ अनोमा नदी के तट पर अपने सिर को मुंडवा कर भिक्षुओं का काषाय वस्त्र धारण किया.

इधर से उधर वे लगभग 7 वर्ष तक भटकते रहे, सर्वप्रथम वैशाली के समीप अलार कलाम नामक संन्यासी के आश्रम में आये. उसके बाद वे उरुवेला (बोधगया) के लिए प्रस्थान किये जहां पर उन्हें कौडिन्य इत्यादि पांच साधक मिले.

6 वर्ष तक घोर तपस्या और परिश्रम के बाद 35 वर्ष की आयु में वैशाख पूर्णिमा की एक रात पीपल (वट) वृक्ष के निचे निरंजना (पुनपुन) नदी के तट पर सिद्धार्थ को ज्ञान प्राप्त हुआ. इसी दिन से वे तथागत हो गये. ज्ञान प्राप्ति के बाद गौतम बुद्ध के नाम से प्रसिद्ध हुए.

उरुवेला से गौतम बुद्ध सारनाथ आये जहां पर उन्होंने पांच ब्राह्मण संन्यासीयों को अपना प्रथम उपदेश दिया. जिसे बौध ग्रंथों में ‘धर्म चक्र परिवर्तन’ के नाम से जाना जाता है. यहीं से सर्वप्रथम बौध संघ में प्रवेश प्रारम्भ हुआ. तपस्सु और भाल्लिका नाम के शूद्रों को महात्मा बुद्ध ने सर्वप्रथम अनुयायी बनाया.

महात्मा बुद्ध ने अपने जीवन का सर्वप्रथम उपदेश कोशल देश की राजधानी श्रावस्ती में दिया. उन्होंने मगध को अपना प्रचार केंद्र बनाया.

बौध धर्म की शिक्षाएं एवं सिद्धांत

बौध धर्म के त्रिरत्न हैं – बुद्ध, धम्म और संघ.

बौध धर्म के चार आचार्य सत्य हैं:

1. दुःख

2. दुःख समुदाय

3. दुःख निरोध

4. दुःख निरोध गामिनी प्रतिपदा (दुःख निवारक मार्ग) अर्थार्त अष्टांगिक मार्ग.

साथ ही दुःख को हरने वाले तथा तृष्णा का नाश करने वाले अष्टांगिक मार्ग के आठ अंग हैं.

अष्टांगिक मार्ग के तीन मुख्य भाग हैं: प्रज्ञा ज्ञान, शील तथा समाधि. इन तीन प्रमुख भागों के अंतर्गत जिन आठ उपायों की प्रस्तावना की गयी है वे इस प्रकार हैं:

- सम्यक दृष्टि: वस्तुओं के वास्तविक स्वरूप का ध्यान करना

- सम्यक संकल्प: आस्तिक, द्वेष तथा हिंसा से मुखत विचार रखना

- सम्यक वाणी: अप्रिय वचनों का सर्वदा परित्याग

- सम्यक कर्मान्त: दान, दया, सत्य, अहिंसा इत्यादि सत्कर्मों का अनुसरण करना

- सम्यक आजीव: सदाचार के नियमों के अनुकूल आजीविका का अनुसरण करना

- सम्यक व्यायाम: नैतिक, मानसिक एवं अध्यात्मिक उन्नति के लिये सतत प्रयत्न करना

- सम्यक स्मृति: अपने विषय में सभी प्रकार की मिद्या धारणाओं का त्याग करना

- सम्यक समाधि: मन अथवा चित को एकाग्रता को सम्यक समाधि कहते हैं.

अष्टांगिक मार्ग को भिक्षुओं का ‘कल्याण मित्र’ कहा गया है. बौध धर्म के अनुसार मनुष्य के जीवन का परम लक्ष्य है निर्वाण की प्राप्ति. यहीं आपको बता दें कि निर्वाण का अर्थ है दीपक का बुझ जाना और जीवन मरण के चक्र से मुक्त हो जाना. यह निर्वाण इसी जन्म से प्राप्त हो सकता है, किन्तु महापरिनिर्वाण मृत्यु के बाद ही संभव है.

बुद्ध ने दस शिलों के अनुशीलन को नैतिक जीवन का आधार बनाया है. जिस प्रकार दुःख समुदाय का कारण जन्म है उसी तरह जन्म का कारण अज्ञानता का चक्र है. इस अज्ञान रूपी चक्र को ‘प्रतीत्य समुत्पाद’ कहा जाता है.
‘प्रतीत्य समुत्पाद’ ही बुद्ध के उपदेशों का सार एवं उनकी संपूर्ण शिक्षाओं का आधार स्तम्भ है. इसका शाब्दिक अर्थ है: प्रतीत्य मतलब किसी वस्तु के होने पर और समुत्पाद का अर्थ है किसी अन्य वस्तु की उत्पत्ति.

‘प्रतीत्य समुत्पाद’ के 12 क्रम हैं जिसे द्वादश निदान कहा जाता है. जिसमें सम्बन्धित हैं:

जाति, जरामरण – भविष्य काल से

अविधा, संस्कार – भूतकाल से

विज्ञान, नाम-रूप, स्पर्श, तृष्णा, वेदना, षडायतन, भव, उपादान – वर्तमान काल से

बौध धर्म मूलत: अनीश्वरवादी है. बौध धर्म अनात्मवादी है. इसमें आत्मा की परिकल्पना नहीं की गई है. यह पुनर्जन्म में विशवास करता है. बौध धर्म ने जाति प्रथा और वर्ण व्यवस्था का विरोध किया. बौध धर्म का दरवाजा हर जातियों के लिए खुला था. सत्रियों को भी संघ में प्रवेश का अधिकार प्राप्त था. बौध संघ का संगठन गणतंत्र प्रणाली पर आधारित था. बौधों का सबसे पवित्र एवं महत्वपूर्ण त्यौहार वैशाख पूर्णिमा है जिसे ‘बुद्ध पूर्णिमा' के नाम से भी जाना जाता है. इसका महत्व इसलिए हैं क्योंकि इसी दिन बुद्ध का जन्म, ज्ञान की प्राप्ति एवं महापरिनिर्वाण की प्राप्ति हुई.

महात्मा बुद्ध अपने जीवन के अंतिम पड़ाव में हिरण्यवती नदी के तट पर कुशिनारा पहुंचे. जहां पर 80 वर्ष की अवस्था में इनकी मृत्यु हो गई. इसे बुद्ध परम्परा में महापरिनिर्वाण के नाम से जाना जाता है. मृत्यु से पहले उन्होंने अपना अंतिम उपदेश कुशिनारा के परिव्राजक सुभच्छ को दिया. महापरिनिर्वाण के बाद बुद्ध के अवशेषों को आठ भागों में विभाजित किया गया.

अंत में महात्मा बुद्ध के अनमोल विचार या कोट्स

इसमें कोई संदेह नहीं है की महात्मा बुद्ध की शिशाओं और कथनों को अपने जीवन में उतार कर सुख-समृद्धि और सफलता प्राप्त कर सकते हैं. जीवन की कई समस्याओं से बच सकते हैं.

1. तीन चीजें ज्यादा देर तक नहीं छुप सकतीं, सूर्य, चंद्रमा और सत्य.

2. तुम अपने क्रोध के लिए नहीं दंड पाओगे, तुम अपने क्रोध के द्वारा दंड पाओगे.

3. मैं कभी नहीं देखता कि क्या किया जा चुका है. मैं हमेशा देखता हूँ कि क्या किया जाना बाकी है.

4. जिसने अपने को वश में कर लिया है, उसकी जीत को देवता भी हार में नहीं बदल सकते.

5. हजारो साल बिना समझदारी के बिना जीने से बेहतर है, एक दिन समझदारी के साथ जीना.

6. घ्रणा को घ्रणा से खत्म नहीं किया जा सकता है बल्कि इसे प्रेम से ही खत्म किया जा सकता है जो की एक प्रक्रतिक सत्य है.

7. हम अपने विचारों से ही अच्छी तरह ढलते है, हम वही बनते है जो हम सोचते है. जब मन पवित्र होता है तो खुशी परछाई की तरह हमेशा हमारे साथ चलती है.

8. अपने मोक्ष के लिए खुद ही प्रयत्न करें, दूसरों पर निर्भर ना रहे.

9. शारीरिक आकर्षण आँखों को आकर्षित करती है, अच्छाई मन को आकर्षित करती है.

10. आज हम जो कुछ भी हैं, वो हमने आज तक क्या सोचा इस बात का परिणाम है.

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150 की नौकरी से 1.5 करोड़ की कार का मालिक बनने तक, कभी ढाबे पर काम करने वाले राहुल की कहानी ❤️

किस्मत उस ऊंट की तरह है, जिसे देख कर आप अंदाजा नहीं लगा सकते कि वह किस करवट बैठेगा. आज जो लोग, दूसरों के दुकान, मकान में चंद रुपयों के लिए उनकी हर बात मान रहे हैं, संभव है कि कल को इन्हीं में से कोई हैसियत में अपने मालिक से कई गुना ज्यादा बड़ा हो जाए. समय की गाड़ी का वैसे तो कोई सटेरिंग नहीं होता लेकिन इसे अगर कोई कंट्रोल कर सकता है तो वही शख्स जिसने अपने पैरों पर खड़े होने के बाद से ही जी तोड़ मेहनत की हो. राहुल तनेजा की कहानी भी कुछ ऐसी ही है. आइए जानते हैं कि एक दौर में लोगों की जूठन उठाने वाले राहुल ने कैसे अपनी मेहनत से अपनी किस्मत को बदल दिया और किस वजह से वह आए थे चर्चा में :

खरीदा था देश का सबसे महंगा नंबर :

मध्यप्रदेश के कटला में जन्में राहुल तनेजा 18 साल पहले एक ढाबे पर मात्र 150 रुपये की नौकरी करते थे.  जिस स्थिति में वे थे उस स्थिति से दुनिया के असंख्य लोग गुजरते हैं, जिसमें से अधिकांश लोग इन्हीं परिस्थितियों में अपनी पूरी ज़िंदगी काट लेते हैं लेकिन राहुल तनेजा की किस्मत अन्य लोगों जैसी नहीं थी. ढाबे पर काम करने वाला ये शख्स 2018 में देश भर के अखबारों की सुर्खियों में तब आया था जब इन्होंने अपनी डेढ़ करोड़ की गाड़ी के लिए 16 लाख की नंबर प्लेट खरीदी थी. इन्होंने अपनी लग्जरी कार के लिए 16 लाख का आरजे 45 सीजी 001 नंबर खरीदा था. यह पहली बार नहीं था जब तनेजा अपनी गाड़ी का नंबर खरीदने के लिए चर्चा में आए थे बल्कि इससे पहले उन्होंने 2011 में अपनी बीएमडब्ल्यू 7 सीरीज के लिए 10 लाख का वीआईपी 0001 खरीदा था. परिवहन अधिकारियों के मुताबिक उनके द्वारा खरीदा गया 16 लाख का नंबर उस समय तक देश का सबसे महंगा नंबर था. इससे पहले 11 लाख रुपए तक के नंबर बिके थे. 

कुछ बड़ा करने के लिए छोड़ दिया था घर 

स्वेज फॉर्म में रहने वाले राहुल तनेजा एक इवेंट मैनेजमेंट कंपनी के मालिक हैं. एक टायर पंचर लगाने वाले पिता के इस बेटे की छोटी छोटी आंखों में बहुत पहले ही बड़े सपने तैरने लगे थे. यही वजह रही कि राहुल ने छोटी उम्र में ही घर छोड़ दिया और मध्य प्रदेश से राजस्थान के जयपुर में आ गए. अपना पेट पालने के लिए उन्होंने यहीं के आदर्शनगर के एक ढाबे पर नौकरी करनी शुरू कर दी. सारा दिन काम करने के बदले इन्हें इस ढाबे से महीने के अंत में 150 रुपये मिलते थे. राहुल के साथ एक बात ये अच्छी रही कि इन्होंने मुश्किल हालात में भी पढ़ाई नहीं छोड़ी. 

नौकरी करने के साथ साथ उन्होंने राजापार्क स्थित आदर्श विद्या मंदिर में दाखिला ले लिया और खुद के ही दम पर पढ़ाई करने लगे. रिपोर्ट्स बताती हैं कि राहुल ने दोस्तों की किताब, कॉपी और पासबुक मांग कर अपनी पढ़ाई जारी रखी और 92 प्रतिशत अंक हासिल किए. राहुल ने अपने एक इंटरव्यू में बताया था कि उन्होंने दो साल तक ढाबे पर नौकरी की, इसके बाद उन्होंने कई तरह के काम किए, जैसे कि दिवाली पर पटाखे तो होली पर रंग बेचना. इसी तरह इन्होंने मकर संक्रांति पर पतंगें तथा रक्षाबंधन के समय राखियां बेचने का काम किया. अपनी जरूरतों और पेट की भूख के लिए इन्होंने घर घर जाकर तक अखबार पहुंचाया तो कभी ऑटो रिक्शा चलाया. 

दोस्तों ने दी मॉडलिंग करने की सलाह 

इसी तरह राहुल अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए तरह तरह के काम करते रहे. फिर 1998 में इन्हें वह रास्ता दिखा जो इन्हें बहुत आगे ले जाने वाला था. मेहनतकश होने के साथ साथ राहुल अपनी फिटनेस पर भी पूरा ध्यान देते थे. इनकी अच्छी लुक को देखते हुए इनके दोस्तों ने इन्हें मॉडलिंग करने की सलाह दी. राहुल ने भी उनकी सलाह मान कर मॉडलिंग शुरू कर दी और फिर इन्हें इसका चस्का सा लग गया. इसी दौरान इन्होंने एक फैशन  शो में भाग ले लिया. किस्मत अच्छी रही तथा 1998 में राहुल जयपुर क्लब द्वारा आयोजित एक फैशन शो में विजेता चुन लिए गए. इसके बाद इन्होंने 8 महीने तक फैशन शो किए. फैशन शो करने के साथ साथ राहुल इस बात पर भी नजर जमाए रखते थे कि ये शो ऑर्गेनाइज कैसे होते हैं. 

शो ऑर्गनाइजिंग के बारे में जानकारी प्राप्त करने के बाद इन्होंने फैसला किया कि ये अब स्टेज पर नहीं बल्कि बैक स्टेज परफ़ॉर्म करेंगे. यानी कि अब राहुल ने शो में भाग लेने का नहीं बल्कि ऐसे शोज का पूरा इवेंट संभालने का काम शुरू कर दिया. इसके बाद उन्होंने एक इवेंट मैनेजमेंट कंपनी खोल ली. राहुल इस कंपनी को अपने दम पर आगे बढ़ाते चले गए तथा फिर कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा. 

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जब जाना ही दूर तलब हैं,
तो फिर पछताना कितना गलत है।


~ © PaperLess Study

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@Motivation_Paperlessstudy
नाम राहुल रोहिला ।
खेल- 20km पैदल चाल।


पिता जी इलेक्ट्रीशियन है, पंखे रिपेयर का काम करते है। माता पिता के बीमार रहते, उनकी दवाई पर बहुत खर्च होने के कारण राहुल ने एक समय खेल छोड़ दिया था । दोबारा मेहनत कर 2017 में खेल कोटे से सेना में भर्ती हुए। आज अपनी इच्छा शक्ति और मेहनत के बलबूते पर ओलंपिक्स में खेलने जाएंगे। हरियाणा के इस सपूत के जज्बे को सलाम। 🙏
#InspirationalStories #Sports
भारतीय ट्रैक-फ़ील्ड की रानी ' पी. टी. उषा' का जन्म केरल के कोज़िकोड में 27 जून 1964 को एक गरीब परिवार में हुआ था। बचपन से ही उनकी शारीरिक बनावट एक एथलिट की भाँति थी, लम्बी टांगें और फुर्तीला शरीर, वे घर के किसी भी काम को एकदम फुर्ती से करती थी और हर वक़्त भागती दौड़ती रहती थी। जब वे चौथी कक्षा में थीं तो उन्हें सातवीं कक्षा की चैम्पीयन छात्रा से रेस करने का मौक़ा मिला, इस रेस को जीतने से उनका आत्मविश्वास जाग गया और उनकी रुचि खेलों में हो गयी। 1976 में वहाँ एक खेल विद्यालय खुला तो इन्हें अपने ज़िले का प्रतिनिधि चुना गया, जिससे हर महीने 250 रुपये की छात्रवृति और पौष्टिक भोजन उन्हें मिलने लगा। 1979 में उन्होंने राष्ट्रीय विद्यालय खेलों में भाग लिया और 1980 के मास्को ओलम्पिक में भी गयीं, पर अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पायीं, फिर 1982 के एशियाड खेलों में उन्होंने 100 मीटर और 200 मीटर दौड़ में स्वर्ण पदक जीते। राष्ट्रीय स्तर पर कई सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन दोहराने के साथ 1984 के लांस एंजेल्स ओलंपिक में चौथा स्थान प्राप्त करने वाली भारत की पहली महिला धाविका बनने का गौरव प्राप्त किया। जकार्ता एशियन चैंम्पियनशिप में स्वर्ण पदक लेकर खुद को प्रूव किया, ‘ट्रैक एंड फ़ील्ड स्पर्धाओं’ में लगातार 5 स्वर्ण पदक एवं एक रजत पदक जीतकर वह एशिया की सर्वश्रेष्ठ धाविका बन गयीं। उषा ने अब तक 102 अंतर्राष्ट्रीय पदक जीते हैं। 1984 में उन्हें अर्जुन पुरस्कार व पद्मश्री से सम्मानित किया गया। दृढ़ इच्छाशक्ति और परिश्रम के बल पर अपना स्थान बनाने वाली इस सर्वश्रेष्ठ धाविका को उनके जन्मदिन की हार्दिक बधाइयाँ !
कहानी - भगवान श्रीकृष्ण बचपन में माखन चोरी की लीला किया करते थे। माखन चोरी से परेशान होकर गोकुल के बहुत सारे लोग नंद बाबा और यशोदा के सामने कृष्ण की शिकायत करते थे।

एक दिन नंद बाबा ने विचार किया कि ये सब कृष्ण का सिर्फ खेल है या इसके पीछ कोई और विचार है? नंद बाबा ने सभी के सामने कृष्ण से पूछा, 'तुम माखन चोरी क्यों करते हो? हमारे घर में किसी चीज की कमी नहीं है तो फिर दूसरों की मटकियां क्यों फोड़ते हो?'

कृष्ण ने कहा, 'आप लोग अपनी मेहनत और ईमानदारी से दूध, दही, घी, माखन तैयार करते हैं और फिर ये चीजें कर (टैक्स) के रूप में कंस जैसे दुष्ट राजा को दे देते हैं। इस तरह दुष्ट सत्ता कैसे समाप्त होगी? प्रजा अपनी ईमानदारी और परिश्रम का फल श्रेष्ठ राजा को दे तो समझ आता है। अगर आप कंस को कर देना नहीं रोकेंगे तो मैं चोरी और तोड़-फोड़ करता रहूंगा, ताकि आप लोग ये विचार करें कि कंस को कर देना अच्छी बात नहीं है।'

सीख - कृष्ण ने बचपन में ही ये सीख दे दी है कि हमें अपनी ईमानदारी और परिश्रम से कमाई गई धन-संपत्ति दुष्ट लोगों को नहीं देनी चाहिए। हम ऐसी मेहनत न करें, जिससे किसी बुरे व्यक्ति को लाभ मिलता है। ऐसा करने से बुरे लोगों की ताकत बढ़ती है। इसलिए ईमानदारी और मेहनती व्यक्ति को भी सतर्क रहना चाहिए।
सुप्रभात
ये है कर्नाटक की 51 वर्षीय "गौरी नायक"
जिन्होंने बिना किसी मदद के रोज अकेले 6 घण्टे मेहनत कर के 6 महीने में अपने खेत मे लगे पौधों को पानी देने के लिए 60 फुट गहरे दो कुँए खोद डाले आज उन्हें इस मेहनत की वजह से "लेडी भागीरथ" के नाम से जाना जाता है
नमन है इस साहसी महिला को🙏🙏
✍️काम ऐसा करो कि
तुम्हें अपने पैदा होने पर गर्व हो

❣️इस दुनिया में हर इंसान के अंदर कुछ करने की क्षमता होती है... कोई किसी से कम नही होता है..कोई भी इंसान अगर full devotion के साथ किसी चीज को करने पर लग जाये तो...निश्चय ही एक न एक दिन कर लेगा...लेकिन इसे करने के लिए आपके अंदर एक emotion का होना जरूरी है...

💪आपको सफल होना है तो आपके अंदर एक ऐसा emotion होना चाहिए..जो उस कार्य को करने के लिए आपको मजबूर कर दे.. जिस देश में करीब 20 करोड़ लोग हर रोज भूखे पेट सोने के लिए मजबूर हैं।

💪और जिस देश में हर रोज़ महिलाएं किसी ना किसी अपराध का शिकार होती हैं...तो मुझे नही लगता उस देश के युवा के पास इससे बड़ा भी कोई emotion ढूँढना पड़े..रूह-रूह में जो आग लगा दे ऐसा emotion को ढूंढ लो.
💪 और जिस दिन आपके अंदर वो emotion पैदा हो गया न..तो यकीन मानो...दिन-रात को एक कर दोगे पढ़ते पढ़ते...ये मोटी मोटी किताबे रट्टा मार जाओगे..जब ऐसा emotion पैदा हो जायेगा तो आपको sandeep maheshwari का video नही देखना पड़ेगा...
खुद ब ✍️खुद करने लगोगे ...emotion 🤔में बहुत ताकत होती है.. जिस पहाड़ को काटने के लिए बड़े बड़े मशीनों की जरूरत होती है....उस कार्य को दशरथ मांझी ने केवल छेनी हथौड़ा से काट डाला था..

🤔 जानते है कैसे ?
क्योकि उनके पास एक emotion था की मुझे हर हालात में इसे काट कर गिराना है..पहाड़ काटने 💪के क्रम में बार बार वे खून से लथपथ होकर जख्मी हुए.. लेकिन उनके मुँह से एक ही शब्द निकलता था...जब तक तोड़ेंगे नहीं, तब तक छोड़ेंगे नहीं...बार बार पहाड़ो के तरफ देख कर कहते थे बहुतै बड़ा दंगल चलेगा रे हमार तोहार.....
कड़ी धूप,सर्दी,बरसात में भी वे डटे रहे..और अंततः विशाल पहाड़ का सीना चीर कर रास्ता बना डाले...
✍️ तो चलो

ढूंढो अपने आप में ऐसा emotion जो तुम्हे इतिहास रचने को विवश कर दे ...वो आग पैदा करो अपने अंदर जिसकी चिंगारिया तुम्हे मंसूरी तक ले जायेगी.. सोचो मत ठोक दो जी जान ...सफलता तुम्हारे पास है.. बढ़ाओ।।
2025/06/25 15:25:18
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